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v-model in hindi

v-model in software engineering in hindi

सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में V model क्या है, आज हम इसके बारे में पढ़ेंगे, V-Model in Software engineering in Hindi और साथ ही इसकी कार्यप्रणाली को भी समझेंगे। 

v-model in software engineering in hindi

V-मॉडल एक SDLC मॉडल है, इसे verification and Validation model भी कहा जाता है। सॉफ्टवेयर डेवलोपमेन्ट प्रक्रिया में V-model का उपयोग व्यापक रूप में किया जाता है, और इसे एक Disciplined मॉडल माना जाता है। V-model में प्रत्येक process का execution अनुक्रमिक (Sequential) रूप में होता है, यानि नए चरण (Phase) की शुरुवात पिछले चरण के समाप्त होने के बाद ही होती है।

यह प्रत्येक डेवलोपमेन्ट चरण के साथ टेस्टिंग चरण के जुड़ाव पर आधारित है, यानि V-model में प्रत्येक डेवलोपमेन्ट phase के साथ उसका परिक्षण phase भी V-आकार में जुड़ा होता है, दूसरे शब्दों में कहें तो सॉफ्टवेयर डेवलोपमेन्ट और टेस्टिंग गतिविधियाँ दोनों एक ही समय पर की जाती हैं। 

तो इसमें जहाँ एक तरफ Verification phase होता है, तो दूसरी तरफ Validation phase यानि दोनों activities साथ-साथ चलती हैं और यह दोनों Coding phase द्वारा एक दूसरे से V-Shape में जुड़े होते हैं, इस लिए इसे V-model कहा जाता है। V-design जहाँ बायां हिस्सा डेवलोपमेन्ट एक्टिविटी को दर्शाता है, तो दायां टेस्टिंग एक्टिविटी को। 

V-model verification phase in hindi

V-मॉडल में निम्नलिखित वेरिफिकेशन फेज हैं। 

Requirement Analysis :- इस चरण में प्रोजेक्ट मैनेजर द्वारा कस्टमर से कम्यूनिकेट कर उस की requirement और expectation को समझा जाता है, यानि यह phase जानकारी एकत्र करने और उद्देश्य स्पष्ट करने का होता है। 

System Design :- यह चरण प्रोडक्ट डेवलोपमेन्ट के लिए सिस्टम को डिज़ाइन करने का है। इसमें डेवलोपमेन्ट टीम द्वारा यह अध्यन किया जाता है, की Requirements को कैसे Implement किया जाएगा और किस हार्डवेयर और सिस्टम सेटअप की आवश्यकता होगी।  

Architectural design :- इस चरण में सॉफ्टवेयर आर्किटेक्चर को तैयार किया जाता है, विभिन्न modules उनके बीच के संबंध, निर्भरता, डाटा ट्रांसफर और डायग्राम आदि को इस फेज में identify किया जाता है, और साथ ही outer system के साथ इसके कम्युनिकेशन को भी चेक कर इसे अंतिम रूप दे दिया जाता है। 

Module design :- Module डिज़ाइन को (LLD) low level design भी कहा जाता है, इस चरण में सॉफ्टवेयर कॉम्पोनेन्ट के प्रत्येक module को डिज़ाइन किया जाता है, यानि पुरे प्रोडक्ट डेवलोपमेन्ट को छोटे modules में break down कर दिया जाता है। 

Coding :- यह वह चरण होता है, जिसमे coding होती है, यानि पिछले डिज़ाइन फेज के बाद अब समय होता है, कोडिंग और इम्प्लीमेंटेशन का। इसमें requirements को देखते हुवे कोडिंग के लिए सबसे उपुक्त प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को चुना जाता है। 

Validation phase in hindi

V-मॉडल में निम्नलिखित वेलिडेशन फेज हैं। 

Unit testing :- यूनिट टेस्टिंग को Module design फेज के दौरान परफॉर्म किया जाता है, इसमें प्रत्येक module की टेस्टिंग की जाती है, ताकि उसमे यदि कोई bug या error है, तो उसे दूर किया जा सके।

Integration testing :- यूनिट टेस्टिंग के पूरा होने के बाद इंटीग्रेशन टेस्टिंग की जाती है। इंटीग्रेशन टेस्टिंग को आर्किटेक्चरल डिज़ाइन फेज के दौरान परफॉर्म किया जाता है। इस टेस्टिंग में modules को integrate कर उनकी टेस्टिंग की जाती है। 

System testing :- सिस्टम टेस्टिंग को सिस्टम डिज़ाइन फेज के दौरान परफॉर्म किया जाता है। सिस्टम टेस्टिंग में  पूरी एप्लीकेशन की टेस्टिंग की जाती है, उसके फंक्शन्स को, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के integration तथा Coordination सभी की इसमें टेस्टिंग की जाती है, और यदि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर कहीं कोई bug मिलता है, तो उसे यहाँ पर resolve कर दिया जाता है। 

User Acceptance testing :- (UAT) यूजर एक्सेप्टेन्स टेस्टिंग को User environment में परफॉर्म किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके की तैयार किया गया सिस्टम User requirements की पूर्ति करता है, तथा उपयोग के लिए तैयार है। इस टेस्टिंग प्रक्रिया को Requirement analysis फैज के दौरान परफॉर्म किया जाता है। 

Advantages

1 :- यह एक simple और उपयोग करने में आसान मॉडल है।

2 :- कोडिंग से पूर्व ही प्लानिंग, टेस्टिंग और डिजाइनिंग टेस्ट किए जा सकते हैं।  

3 :- यह बहुत ही Disciplined मॉडल है, जिसमे की phase by phase डेवलोपमेन्ट और टेस्टिंग होती चली जाती है। 

4 :- शुरुवाती स्टेज में ही defects का पता लग जाता है। 

5 :- इसका उपयोग कर छोटे और मध्यम स्तर के डेवलोपमेन्ट आसानी से पुरे किए जा सकते हैं। 

Disadvantages

1 :- किसी भी जटिल प्रोजेक्ट्स के लिए यह मॉडल उपयुक्त नहीं है। 

2 :- इसमें उच्च जोखिम और अनिश्चितता दोनों बनी रेहती हैं। 

3 :- यह एक ongoing project के लिए उपयुक्त मॉडल नहीं है। 

4 :- यह मॉडल ऐसे प्रोजेक्ट के लिए बिलकुल भी उपयुक्त नहीं है, जो अस्पष्ट हो तथा जिसमे Requirement में बदलाव हों

 

नोट :- आपने पढ़ा V Model in Software engineering in Hindi, हमें उम्मीद है, कांसेप्ट आपको समझ आ गया होगा। यदि जानकारी समझ में आगई है, तो इसे अपने दोस्तों को भी शेयर करें, धन्यवाद।  

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