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what is regression testing in hindi | रिग्रेशन टेस्टिंग क्या होती है

इस पोस्ट में आप जानेंगे रिग्रेशन टेस्टिंग क्या है, Regression testing in Hindi, और इसके प्रकार क्या हैं। जैसे की हम सभी जानते हैं, testing, (SDLC) सॉफ्टवेयर परीक्षण जीवन चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, टेस्टिंग SDLC का 5th फेज है, जिसका अपना एक Life cycle होता है, जो की (STLC) Software testing life cycle केहलाता है।

इसके भीतर किसी भी तैयार किए गए सॉफ्टवेयर की क्रमबद्ध तरीके से टेस्टिंग की जाती है, ताकि सॉफ्टवेयर में यदि किसी प्रकार के bugs हैं, कमियाँ हैं, तो शुरुवाती तोर पर ही उनका पता लगाकर उन कमियों को दूर किया जा सके। इसी प्रकार Regression testing भी सॉफ्टवेयर टेस्टिंग का ही एक प्रकार है, जिसमे सॉफ्टवेयर कोड में हुवे बदलावों को टेस्ट किया जाता है, और यदि कहीं कोई कमी पाई जाती है, तो उसे दूर किया जाता है। चलिए विस्तार से जानते हैं, रिग्रेशन टेस्टिंग का क्या काम है।  

Regression testing in Hindi | रिग्रेशन टेस्टिंग क्या है

रिग्रेशन टेस्टिंग सॉफ्टवेयर टेस्टिंग का ही एक प्रकार है, जिसके द्वारा यह टेस्ट किया जाता है, की क्या सॉफ्टवेयर कोड में किए गए सुधार, updates या उसमे किए गए बदलाव से सॉफ्टवेयर की वर्किंग में किसी प्रकार की कमी आई है, क्या वह अपेक्षा अनुसार perform कर रहा है, या नहीं। 

यानि regression testing का उद्देश्य यह पता लगाना है, की सॉफ्टवेयर में किए गए किसी बदलाव के बाद क्या वह सॉफ्टवेयर उसी प्रकार से व्यवहार कर रहा है, जैसे की उसे करना चाहिए, यदि सॉफ्टवेयर की वर्किंग में बदलाव आ गया है, वह अपेक्षित रूप से कार्य नहीं कर रहा है, तो ऐसे में उसमे रिग्रेशन (Error) आंका जाता है। 

चलिए दूसरे शब्दों में समझते हैं, सॉफ्टवेयर टेस्टिंग के विभिन्न levels होते हैं, जैसे यूनिट टेस्टिंग, इंटीग्रेशन टेस्टिंग, सिस्टम टेस्टिंग जिसमे अंतिम लेवल regression testing का होता है।

जब कभी किसी वर्किंग सॉफ्टवेयर में कोई update किया जाता है, उसमे कोई नया feature जोड़ा जाता है, या एप्लीकेशन के कोड में बदलाव होता है, तो ऐसी स्थिति कई बार पेहले से चलता आ रहा वर्किंग सॉफ्टवेयर भी कार्य करना बंद कर देता है, उसके functions सही work नहीं करते हैं, अपडेट होने के कारण उनमे समस्या उत्पन्न हो जाती है, और ऐसी समस्या को Diagnose करने के लिए ही Regression testing की जाती है।  

रिग्रेशन टेस्टिंग क्यों जरुरी है ?

सोचिये यदि एप्लीकेशन upgrade होने पर एप्लीकेशन के मुख्य फंक्शन ही सही से काम करना बंद कर दें, तो ऐसे में उस एप्लीकेशन में हुई किसी समस्या को समझ पाना एक काफी मुश्किल काम होगा, क्योंकि मल्टीनेशनल कंपनियों में ऐसी कई बढी सॉफ्टवेयर ऍप्लिकेशन्स का उपयोग किया जाता है, जिनमे कई फीचर्स होते हैं, और उन सभी फीचर्स के functions को चेक कर पाना संभव नहीं होता है। 

तो इस समस्या का समाधान Regression testing है, जो की सॉफ्टवेयर डेवलपर को वह क्षमता प्रदान करता है, की वह बिना end User Experience को disturb करे समय-समय पर सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन में improvement कर पाता है। ऐसे में जब कभी भी एप्लीकेशन कोड में बदलाव किया जाता है, तो वहाँ पर Regression testing की आवश्यकता होती है। 

रिग्रेशन टेस्टिंग कब कीया जाता है ?

जब भी डेवलपर द्वारा किसी एप्लीकेशन में कोई बदलाव किये जाते हैं, उसमे नया फीचर ऐड किया जाता है, पुराने फीचर को अपग्रेड किया जाता है, सॉफ्टवेयर bugs को fix किया जाता है, या कुछ नया implementation किया जाता है, तो ऐसे में रिग्रेशन टेस्टिंग परफॉर्म की जाती है। 

चलिए उदाहरण द्वारा इसे समझते हैं। 

मान लिए आप एक सॉफ्टवेयर डेवलपर फर्म है, आपने क्लाइंट प्रोजेक्ट के लिए एक ERP एप्लीकेशन डेवलप किया है, जिसके ready होने के बाद आपने रिग्रेशन टेस्टिंग परफॉर्म की, और मल्टीप्ल टेस्टिंग सत्र के बाद एप्लीकेशन को pass कर क्लाइंट को एप्लीकेशन की कॉपी भेज दी।

अब जब क्लाइंट ने एप्लीकेशन को चेक किया तो पाया की उसे application में कुछ नए फीचर्स add कराने हैं, ऐसे में आपने ग्राहक की उस query पर कार्य किया और एप्लीकेशन में नए features जोड़ दिए, जिसके बाद आपको एक बार फिर से रिग्रेशन टेस्टिंग करनी होगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके की एप्लीकेशन के सभी जरुरी फंक्शन सही से काम कर रहे हों, कहीं ऐसा ना हो की नए फीचर add करने के बाद पुराने किसी function पर effect पड़ा हो। 

रिग्रेशन टेस्टिंग के प्रकार | Types of regression testing in Hindi

यदि सुनिश्चित करना हो की code में किए गए बदलाव से एप्लीकेशन के existing फंक्शन प्रभावित नहीं हुवे हैं, तो निम्नलिखित प्रकार की रिग्रेशन टेस्टिंग को परफॉर्म किया जाता है। 

Corrective Regression :- रिग्रेशन टेस्टिंग का यह प्रकार काफी popular है, और यह टेस्टिंग के सरल रूपों में से एक है, क्योंकि इसमें काफी कम efforts की जरुरत होती है। करेक्टिव रिग्रेशन टेस्ट के अंतर्गत मौजूदा code base में कोई भी बदलाव नहीं होता है, बल्कि टेस्टर द्वारा existing टेस्ट cases का उपयोग कर एप्लीकेशन की मौजूदा Functionality को टेस्ट किया जाता है। 

Progressive Regression :- इस टेस्टिंग प्रक्रिया का उपयोग तब किया जाता है, जब प्रोग्राम specification में नए सिस्टम कंपोनेंट्स को introduce या modify किया जाता है, और ऐसे में नए test cases को डिज़ाइन किया जाता है, ताकि पता लगाया जा सके, की अपडेट के कारण existing feature पर प्रभाव ना पड़ा हो। 
 

Selective Regression :- टेस्टिंग के इस प्रकार का उपयोग तब किया जाता है, जब एप्लीकेशन के चुनिंदा कंपोनेंट्स या पार्ट को retest करना हो, और इसमें समय और पैसे दोनों की बचत होती है। 

Retest-all Regression :- इस टेस्टिंग प्रक्रिया में काफी समय और efforts की आवश्यकता होती है, जैसे की इसके नाम से ही पता लग जाता है, की इसमें सभी टेस्टिंग का पुनः परिक्षण किया जाता है, जो की काफी time taking प्रक्रिया है। इसलिए जब code में छोटे modification किए जाते हैं, तो यह टेस्टिंग प्रक्रिया उपयोगी नहीं होती है।
  

Complete Regression :- जब एप्लीकेशन root code में multiple changes किए गए हों, तो वहाँ पर इस टेस्टिंग प्रक्रिया का उपयोग करना प्रभावी होता है, क्योंकि यह टेस्टिंग पुरे एप्लीकेशन स्ट्रक्चर पर लागु होती है, जिसमे कहीं यदि कोई defects हैं, तो उनका पता लगाया जा सकता है। 

रिग्रेशन टेस्टिंग टूल

रिग्रेशन टेस्टिंग को ऑटोमेट कर टेस्ट execution के खर्चे और समय दोनों को कम किया जा सकता है, जिसके लिए बेहतरीन टूल की आवश्यकता पड़ती है, तो यहाँ पर मुख्य Regression testing tools की लिस्ट दी गई है, जिनका उपयोग किया जा सकता है। 

:- Selenium 
:- IBM rational functional tester 
:- Watir
:- Testim
:- Rainforest QA

निष्कर्ष (Conclusion)

आपने जाना सॉफ्टवेयर टेस्टिंग में रिग्रेशन टेस्टिंग क्या होता है, Regression testing in Hindi, तथा रिग्रेशन टेस्टिंग के प्रकार क्या हैं, साथ ही आपने रिग्रेशन टेस्टिंग के महत्व के बारे में भी पढ़ा। उम्मीद है, हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित हुई होगी, यदि जानकारी अच्छी लगी है, तो इसे आगे शेयर करें। 

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